विजन व मिशन

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हम सब के लिए आवश्यक है कि इस समय-समय पर अपने आप से यह सवाल करते रहे कि आखिर हमने अपने लिए यह रास्ता ही क्यों चुना? अपने तमात सहपाठियों व पड़ोसियों की भाँति उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ में शामिल होकर हम भी स्वयं के लिए व अपने निकट सम्बन्धियों के लिए सुख-सुविधाएँ जुटाने में इतने ही समर्पित क्यों नहीं है? आखिर वह कौन से तत्व है व वे कौन सी प्रक्रियाएँ है जो हमें व्यक्तिनिष्ठ प्रतिबद्धता से हट कर समष्टिनिष्ट प्रतिबद्धता की ओर प्रेरित करती है। वस्तुतः अपने चारों ओर के सामाजिक-राजनैतिक यथार्थ के प्रति आदर्शवादी व ईमानदार जवाबदेही के अहसास का इस प्रक्रिया में प्रमुख हाथ है। हम सब स्वभावतः अपनी व अपने आस-पास की परिस्थितियों का विश्लेषण कर उनके प्रति अपनी एक समझ पैदा करते हैं। हम अपने सामाजिक परिवेश की विसंगतियों व दुविधाओं को पहचान कर उन पर अपनी राय बनाते हैं। इस स्वाभाविक प्रक्रिया का अगला चरण एक ऐसे समाज की कल्पना करना है जहाँ वे विसंगतियों व दुविधाएं न हो जो हमें विचलित करती है। इस प्रकार वर्तमान यथार्थ की हमारी समझ व उसका विश्लेषण के आधार पर उस सोच का विकास होता है जो भावी समाज के समीकरणों की रूपरेखा को निरूपित करती है। इसी को हमारे संदर्भ में "विजन" कहते हैं।

Description

यह पाठ सामाजिक प्रतिबद्धता, "विजन" (दृष्टिकोण) और "मिशन" (कार्य योजना) की अवधारणाओं की गहराई से व्याख्या करता है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार व्यक्ति अपने सामाजिक-राजनैतिक यथार्थ के प्रति ईमानदार जवाबदेही के कारण, उपभोक्तावादी दौड़ से हटकर समाज के लिए काम करने की प्रेरणा पाता है। यह प्रक्रिया विचार और अनुभवों के माध्यम से एक "विजन" के निर्माण से शुरू होती है – एक ऐसे समाज की कल्पना जिसमें वर्तमान विसंगतियाँ न हों। इस विजन को साकार करने के लिए "मिशन" की आवश्यकता होती है, जो उस विजन का व्यावहारिक रूप होता है।

Keywords

आदर्शवादी जवाबदेही, विजन, मिशन, संगठन निर्माण, परिवर्तनशील मिशन

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